कहीं ट्रेन जली फ़िर घर जले

(कहीं तो कुछ बूरा हुआ – न तो ट्रेन को जलना था, न ही तो घरों को. नतीजन फ़ायदा तो दोनों के सौदागरों ने उठाया है.)

कहीं ट्रेन जली फ़िर घर जले

कितने इन्साँ मर जले

ग़म इतना है उपरवाले

ये तेरे नामों पर जले

दिल पर लगती है चोट जभी इन

मासूमों को देखता हूँ

हाय क्यूँ नहीं इन दंगों में वो

मौत के सौदागर जले?

पेट से जोड़ा दिल से सील दे

उपरवाले कहता हूँ

इससे पहले के इन दंगों में

कहीं ख़ुद तेरा घर जले

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