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Category Archives: ગીતો
ग़र भारत को ललकारा है
(लिखा तारीख: फ़रवरी १८, १९९२) घर घर से उठेगी सेना चील बन कर लड़ेगी मैना ग़र भारत को ललकारा है कायरता की शांत निंद से रक्तकृपाण अहिंसक है कोटि मृत्यु से एक कायरता कहीं अधिक विध्वंसक है यवनों और हूणों … पढना जारी रखे
हिन्दुस्तानी (हिन्दी-उर्दू मिश्र), ગીતો, Homesickness, દેશચિંતન અને સંસ્કૃતિચિંતન में प्रकाशित किया गया
Tagged देशभक्ति, वीर रस
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मरने चले हैं
(लिखा तारीख: सितम्बर ०७, १९९०) (राग: माँड) (ताल: दीपचंदी) आप पे हम तो मरने चले हैं पूछते हैं लोग “क्या करने चले हैं?” कभी हमें प्यार के काबिल न समझा हमें तो शिकार ख़ुद को क़ातिल समझा जानते हुए सर … पढना जारी रखे
हिन्दुस्तानी (हिन्दी-उर्दू मिश्र), ગીતો, પ્રેમ में प्रकाशित किया गया
Tagged प्रणय, बेरूख़ी
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कहीं ट्रेन जली फ़िर घर जले
(कहीं तो कुछ बूरा हुआ – न तो ट्रेन को जलना था, न ही तो घरों को. नतीजन फ़ायदा तो दोनों के सौदागरों ने उठाया है.) कहीं ट्रेन जली फ़िर घर जले कितने इन्साँ मर जले ग़म इतना है उपरवाले … पढना जारी रखे
हिन्दुस्तानी (हिन्दी-उर्दू मिश्र), ગીતો, Homesickness, દેશચિંતન અને સંસ્કૃતિચિંતન में प्रकाशित किया गया
Tagged ईश्वर संबोधन, करुण रस, समभाव
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दोनों चले गये – हास्य रस
(लिखा तारीख: अक्तूबर ०३, १९९५) होली चंदे को हलाल कर दोनों चले गये काँटो भरे सवाल पर दोनों चले गये बजता रहा मुहब्बत का मल्हार दिलरूबा पर थूक के सूर-ताल पर दोनों चले गये राहे वफ़ा गुज़रती थी कोह-ओ-जंगल के … पढना जारी रखे
दोनों चले गये – शृंगार रस
(लिखा तारीख: अक्तूबर ०३, १९९५) उड़ते होली गुलाल पर दोनों चले गये मख़मली रूमाल पर दोनों चले गये बजता रहा मुहब्बत का मल्हार दिलरूबा पर ग़ैनों के जमाल पर दोनों चले गये राहे वफ़ा गुज़रती थी कोह-ओ-जंगल के बीच झिंगुरों … पढना जारी रखे
दोनों चले गये – करुण रस
(लिखा तारीख: अप्रैल ०७, १९९४) जलती होली की राख पर दोनों चले गये काँटो भरी वह शाख पर दोनों चले गये बजता रहा मुहब्बत का मल्हार दिलरूबा पर जलते हुए बैसाख पर दोनों चले गये राहे वफ़ा गुज़रती थी कोह-ओ-जंगल … पढना जारी रखे
Yuppy गीत
(लिखा तारीख: २००९) (ताल: दादरा) इन सितारों में कहीं मेरी ज़मीं खोई है आँखें बहतीं जो न रहती तो और क्या करतीं? दिल न भरतीं न उभरतीं चाहे मरतीं इस समंदर में कहीं मेरी आँख रोई है इन. मैं तो … पढना जारी रखे